Thursday, July 14, 2011
Wednesday, June 1, 2011
Tuesday, May 31, 2011
Wednesday, May 4, 2011
Heartiest Congratulations!
Nandeshwar Raj Bharati
Class: X B
KV No.3, AF-II, Jamnagar
The winner of the First Prize both at the Regional & National Levels for his Essay Tagore: A Citizen of his Country and of the Universe (Hindi)in the ThinkQuest Celebration of Tagore Mahotsav...
Class: X B
KV No.3, AF-II, Jamnagar
The winner of the First Prize both at the Regional & National Levels for his Essay Tagore: A Citizen of his Country and of the Universe (Hindi)in the ThinkQuest Celebration of Tagore Mahotsav...
Pl click the link below and download the file to go through his essay:
Friday, April 8, 2011
रवीन्द्र नाथ टैगोर की प्रसिद्ध कहानी : स्त्री का पत्र
पूज्यवर,
आज पन्द्रह साल हुए हमारे ब्याह को. हम तब से साथ ही रहे. अब तक चिट्ठी लिखने का मौका ही नहीं मिला. तुम्हारे घर की मझली बहू जगन्नाथपुरी आई थी, तीर्थ करने.
आई तो जाना कि दुनिया और भगवान् के साथ मेरा एक और नाता भी है. इसलिए आज चिट्ठी लिखने का साहस कर रही हूँ. इसे मझली बहू की चिट्ठी न समझना.
वह दिन याद आता है, जब तुम लोग मुझे देखने आए थे. मुझे बारहवां साल लगा था.सुदूर गांव में हमारा घर था. पहुँचने में कितनी मुश्किल हुई तुम सबको. मेरे घर के लोग आव-भगत करते-करते हैरान हो गए.
विदाई की करूण धुन गूंज उठी. मैं मझली बहू बनकर तुम्हारे घर आई. सभी औरतों ने नई दुल्हन को जाँच परखकर देखा. सबको मानना पड़ा – बहू सुन्दर है.
मैं सुन्दर हूँ, यह तो तुम लोग जल्दी भूल गए. पर मुझ में बुद्धि है, यह बाद तुम लोग चाहकर भी न भूल सके. मां कहती थी, औरत के लिए तेज दिमाग भी एक बला है.
लेकिन मैं क्या करूं. तुम लोगों ने उठते बैठते कहा, “यह बहू तेज है.”
लोग बुरा भला कहते हैं सो कहते रहें. मैंने सब साफ कर दिया.
मैं छिप-छिपकर कविता लिखती थी. कविताएँ थीं तो मामूली, लेकिन उनमें मेरी अपनी आवाज थी. वे कविताएँ तुम्हारे रीति रिवाजों के बन्धनों से आजाद थीं.
मेरी नन्हीं बेटी को छीनने के लिए मौत मेरे बहुत पास आई. उसे ले गई पर मुझे छोड़ गई. मां बनने का दर्द मैंने उठाया, पर मां कहलाने का सुख न पा सकी.
इस हादसे को भी पार किया. फिर से जुट गई रोज-मर्रा के काम-काज में. गाय-भैंस, सानी-पानी में लग गई. तुम्हारे घर का माहौल रूखा और घुटन भरा था. यह गाय-भैंस ही मुझे अपने से लगते थे. इसी तरह शायद जीवन बीत जाता.
आज का यह पत्र लिखा ही नहीं जाता. लेकिन अचानक मेरी गृहस्थी में जिन्दगी का एक बीज आ गिरा. यह बीज जड़ पकड़ने लगा और गृहस्थी की पकड़ ढीली होने लगी. जेठानी जी की बहन बिन्दू, अपनी मां के गुजरने पर, हमारे घर आ गई.
मैंने देखा तुम सभी परेशान थे. जेठानी के पीहर की लड़की, न रूपवती न धनवती. जेठानी दीदी इस समस्या को लेकर उलझ गई एक तरफ बहन का प्यार तो एक तरफ ससुराल की नाराजगी.
अनाथ लड़की के साथ ऐसा रूखा बर्ताव होते देख मुझसे रहा न गया. मैंने बिन्दू को अपने पास जगह दी. जेठानी दीदी ने चैन की सांस ली. अब गलती का सारा बोझ मुझ पर आ पड़ा.
पहले-पहले मेरा स्नेह पाकर बिन्दू सकुचाती थी. पर धीरे-धीरे वह मुझे बहुत प्यार करने लगी. बिन्दू ने प्रेम का विशाल सागर मुझ पर उड़ेल दिया. मुझे कोई इतना प्यार और सम्मान दे सकेगा, यह मैंने सोचा भी न था.
बिन्दू को जो प्यार दुलार मुझसे मिला वह तुम लोगों को फूटी आँखों न सुहाया. याद आता है वह दिन, जब बाजूबन्ध गायब हुआ. बिन्दू पर चोरी का इल्जाम लगाने में तुम लोगों को पलभर की झिझक न हुई.
बिन्दू के बदन पर जरा सी लाल घमोरी क्या निकली, तुम लोग झट बोले- चेचक. किसी इल्जाम का सुबूत न था. सुबूत के लिए उसका ‘बिन्दू’ होना ही काफी था.
बिन्दू बड़ी होने लगी. साथ-साथ तुम लोगों की नाराजगी भी बढ़ने लगी. जब लड़की को घर से निकालने की हर कोशिश नाकाम हुई तब तुमने उसका ब्याह तय कर दिया.
लड़के वाले लड़की देखने तक न आए. तुम लोगों ने कहा, ब्याह लड़के के घर से होगा. यही उनके घर का रिवाज है.
सुनकर मेरा दिल कांप उठा. ब्याह के दिन तक बिन्दू अपनी दीदी के पाँव पकड़कर बोली, “दीदी, मुझे इस तरह मत निकालो. मैं तुम्हारी गौशाला में पड़ी रहूँगी. जो कहोगी सो करूंगी...”
बेसहारा लड़की सिसकती हुई मुझसे बोली, “दीदी, क्या मैं सचमुच अकेली हो गई हूँ?”
मैंने कहा, “ना बिन्दी, ना. तुम्हारी जो भी दशा हो, मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ.” जेठानी दीदी की आँखों में आँसू थे. उन्हें रोककर वह बोलीं, “बिन्दिया, याद रख, पति ही पत्नी का परमेश्वर है.”
तीन दिन हुए बिन्दू के ब्याह को. सुबह गाय-भैंस को देखने गौशाला में गई तो देखा एक कोने में पड़ी थी बिन्दू. मुझे देख फफककर रोने लगी.
बिन्दू ने कहा कि उसका पति पागल है. बेरहम सास और पागल पति से बचकर वह बड़ी मुश्किल से भागी.
गुस्से और घृणा से मेरे तनबदन में आग लग गई. मैं बोल उठी, “इस तरह का धोखा भी भला कोई ब्याह है? तू मेरे पास ही रहेगी. देखूं तुछे कौन ले जाता है.”
तुम सबको मुझ पर बहुत गुस्सा आया. सब कहने लगे, “बिन्दू झूठ बोल रही है.” कुछ ही देर में बिन्दू के ससुराल वाले उसे लेने आ पहुँचे.
मुझे अपमान से बचाने के लिए बिन्दू खुद ही उन लोगों के सामने आ खड़ी हुई. वे लोग बिन्दू को ले गए. मेरा दिल दर्द से चीख उठा.
मैं बिन्दू को रोक न सकी. मैं समझ गई कि चाहे बिन्दू मर भी जाए, वह अब कभी हमारी शरण में नहीं आएगी.
तभी मैंने सुना कि बड़ी बुआजी जगन्नाथपुरी तीर्थ करने जाएंगी. मैंने कहा, “मैं भी साथ जाऊँगी.” तुम सब यह सुनकर बहुत खुश हुए.
मैंने अपने भाई शरत को बुला भेजा. उससे बोली, “भाई अगले बुधवार मैं जगन्नाथपुरी जाऊँगी. जैसे भी हो बिन्दू को भी उसी गाड़ी में बिठाना होगा.”
उसी दिन शाम को शरत लौट आया. उसका पीला चेहरा देखकर मेरे सीने पर सांप लोट गया. मैंने सवाल किया, “उसे राज़ी नहीं कर पाए?”
“उसकी जरूरत नहीं. बिन्दू ने कल अपने आपको आग लगाकर आत्महत्या कर ली.” शरत ने उत्तर दिया. मैं स्तब्ध रह गई.
मैं तीर्थ करने जगन्नाथपुरी आई हूँ. बिन्दू को यहाँ तक आने की जरूरत नहीं पड़ी. लेकिन मेरे लिए यह जरूरी था.
जिसे लोग दुःख-कष्ट कहते हैं, वह मेरे जीवन में नहीं था. तुम्हारे घर में खाने-पीने की कमी कभी नहीं हुई. तुम्हारे बड़े भैया का चरित्र जैसा भी हो, तुम्हारे चरित्र में कोई खोट न था. मुझे कोई शिकायत नहीं है.
लेकिन अब मैं लौटकर तुम्हारे घर नहीं जाऊँगी. मैंने बिन्दू को देखा. घर गृहस्थी में लिपटी औरत का परिचय मैं पा चुकी. अब मुझे उसकी जरूरत नहीं. मैं तुम्हारी चौखट लांघ चुकी. इस वक्त मैं अनन्त नीले समुद्र के सामने खड़ी हूँ.
तुम लोगों ने अपने रीति-रिवाजों के पर्दे में मुझे बन्द कर दिया था. न जाने कहाँ से बिन्दू ने इस पर्दे के पीछे से झांककर मुझे देख लिया और उसी बिन्दू की मौत ने हर पर्दा गिराकर मुझे आजाद किया. मझली बहू अब खत्म हुई.
क्या तुम सोच रहे हो कि मैं अब बिन्दू की तरह मरने चली हूँ. डरो मत. मैं तुम्हारे साथ ऐसा पुराना मजाक नहीं करूंगी.
मीराबाई भी मेरी तरह एक औरत थी. उसके बन्धन भी कम नहीं थे. उनसे मुक्ति पाने के लिए उसे आत्महत्या तो नहीं करनी पड़ी. मुझे अपने आप पर भरोसा है. मैं जी सकती हूँ. मैं जीऊँगी.
तुम लोगों के आश्रय से मुक्त,
मृणाल.
Thursday, April 7, 2011
REPORT : Jabalpur Region
A DETAILED REPORT ON TAGORE MAHOTSAVA COMPETITION
HELD IN THE VIDYALAYA
In response to the call of Honr’ble Commissioner, an announcement was made in the assembly, informing students about the competition to be held for various groups. Besides it, the teachers in charge, had also informed the same in all the classes and ensured that a great number responded positively.
Also certain activities like book reviews, poem recitation (of course the poems of Tagore), a brief talk on his contribution to the field of education, his patriotic fervor were conducted as special items. This is to commemorate the 150th anniversary of this great man.
Next phase, the selection of Essay writing entries (Group-A) was made in both English and Hindi, at Vidyalaya. The criteria of selection were as per the rubrics provided in the circular. Among these selected entries, the best among English and Hindi were selected, as per the terms and condition mentioned.
The same procedure was followed for the entries of (group-B) i.e. Book Review and the entries of (group-C) i.e. PPT-My favourite short story respectively.
The skit titled “SACRIFICE”, based on one of the plays of Rabindranath Tagore, condemning human or animal sacrifice to appease gods. There were 6 participants and the duration of the skit was 10 minutes, strictly restricting to time limit as being given in the rubrics. This was group-D activity. It was converted into CD and the same was sent to KVS RO Jabalpur, for evaluation at regional level.
All the six entries,2 essays(1 English, 1 Hindi), 2 Book Reviews; (1 English, 1 Hindi) and two PPTs (I English, 1 Hindi) were uploaded on 2nd February for Regional level Evaluation.
REGIONAL LEVEL EVALUATION:
The proceedings of the evaluation of the essay writing completion- Group A of Tagore Mahotsav, was taken up in the Vidyalaya on 14th February, as per the instructions received from KVS Ro Jabalpur. The entries of the Group-A were down loaded. There were 15 entries in English and 10 entries in Hindi. As directed by KVS RO Jabalpur a 3- member panel of judges was constituted for each language headed by Vice-Principals of KV NO.1 Raipur. The role of Vice Principals was to supervise the whole activity and ensure that, the judges do not take each other’s opinion in deciding the marks.
The Regional Coordinator and the Principal KV No.1 Raipur had created a code number for each of the entries before handing them to judges, so as to ensure that, neither judges nor Vice Principals would know about the details of the entry. This was done mainly to ensure transparency and to provide fair judgment.
The evaluation was made as per the rubrics being supplied by Oracle Education Initiatives and any deviation from it was avoided. The work was taken up with great confidentiality and earnestly.
Regional level evaluation of Group-C competition
(PPT- My favourite short story)
The Vidyalaya was honoured by selecting it as venue for evaluation of PPT- My favourite short story. The evaluation was done on 15th February-2011. There were total 29 entries, 15 in English and 14 in Hindi respectively.
Before the evaluation started, all the PPTs were downloaded and arranged them into one folder each for English and Hindi. TheVidyalaya library was the spot for evaluation of PPTs in English and Sr.Secondary Computer Lab for evaluation of PPTs in Hindi, and all the necessary hardware to view the entries was arranged. It was also ensured the name of the participants and their school names were deleted and some fictitious name was given to each PPT, this is to avoid any favour or bias.
The best two entries were selected, one from each language.
In addition to the panel of judges for Group-A competition, another panel of Judges was invited, to involve in the evaluation process.
All the selected entries ( total 4, 2 essays and 2 PPTs) were uploaded on the think quest project page, for further i.e. National Level Evaluation.
A detailed report of the evaluation procedure and selection criteria was apprised to KVS-RO- Jabalpur Region. All the valuable comments being expressed by the Judges were also noted down.
So the project was taken up religiously and the entire team worked with Great Spirit of reverence and diligence
OVERALL IMPRESSIONS:
The Thinkquest programme was quite motivating especially the theme “Tagore Mahotsav” has been a unique one to relish and to participate. Most of the participants teacher incharges and Regional Coordinator have thoroughly enjoyed working on Thinkquest platform and creating the essays, PowerPoint and Skit on one of the novels.
I thank Oracle for initiating such great gesture on Tagore besides providing opportunity to be a Regional Coordinator.
A Report by
REGIONAL COORDINATOR
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